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1679 से 1724
महाराजा जसवंत सिंह की गर्भवती रानी जसवंत दे ने 19 फरवरी 1679 को राजकुमार अजीत सिंह को लाहौर में जन्म दिया। वीर दुर्गादास एवं अन्य राठौर सरदारों ने मिलकर औरंगजेब से राजकुमार अजीत सिंह को जोधपुर का शासक घोषित करने की मांग की परंतु औरंगजेब ने इसे टाल दिया और कहा कि राजकुमार के वयस्क हो जाने पर उन्हें राजा बना दिया जाएगा। इसके पश्चात औरंगजेब ने राजकुमार और रानियों को परवरिश हेतु दिल्ली अपने पास बुलवा लिया। वहां इन्हें रूप सिंह राठौड़ की हवेली में ठहराया गया। औरंगजेब की मंशा राजकुमार को समाप्त कर जोधपुर राज्य को हमेशा के लिए हड़पने की थी। वीर दुर्गादास औरंगजेब की मंशा को समझ गये और वे अन्य सरदारों के साथ मिलकर चतुरता से राजकुमार अजीत सिंह एवं रानियों को बाघेली नामक महिला की मदद से औरंगजेब के चंगुल से बाहर निकाल लाए। वीर दुर्गादास, गोराधाय तथा मुकुंद दास खींची ने चुपके से दिल्ली से निकालकर सिरोही राज्य के कालिंद्री मंदिर में छिपा दिया। जयदेव नामक ब्राह्मण के घर पर उनकी परवरिश की तथा वयस्क होने पर प्रकट किया। इस कार्य में मेवाड़ महाराणा राज सिंह सिसोदिया ने बड़ी सहायता की। दिल्ली में एक अन्य बालक को नकली अजीत सिंह के रूप में रखा। औरंगजेब ने बालक को असली अजीत सिंह बताते हुए उसका नाम मोहम्मदीराज रखा।
मेवाड़ महाराजा राज सिंह ने अजीत सिंह के निर्वाह के लिए दुर्गादास को केलवा की जागीर प्रदान की। दुर्गादास के प्रयत्नों से इन्हें 1707 ईस्वी में फिर से मारवाड़ राज्य प्राप्त हो गया किंतु कुछ समय बाद ही अजित सिंह ने दुर्गादास को देश निकाला दे दिया। दुर्गादास प्रकरण के अतिरिक्त महाराजा पर कोई आक्षेप नहीं है। उन्हें विवश होकर अपनी पुत्री इंद्रकुंवरी का विवाह मुगल बादशाह है फर्रूखसियर से करना पड़ा किंतु अवसर पाकर उन्होंने फर्रूखसियर की हत्या में प्रमुख भूमिका निभाई और अपनी पुत्री को विधवा करके जोधपुर ले आए। उन्होंने इंद्रकुंवरी का फिर से हिंदू धर्म में शुद्धिकरण किया और उसका विवाह एक क्षत्रिय युवक से कर दिया।
अजीत सिंह धर्म परायण राजा थे। उन्होंने गुण सागर, दुर्गा पाठ भाषा, निर्वाह दोहा, अजीत सिंह रा कह्या दुआ तथा गए उद्धार नामक ग्रंथों की रचना की। महाराजा के लिखे हुए कई गीत भी मिलते हैं। 23 जुलाई 1724 को महाराजा अजीत सिंह की पुत्र बख्त सिंह ने हत्या कर दी। इस हत्या में जयपुर नरेश जय सिंह तथा अजीत सिंह के बड़े पुत्र अभय सिंह का भी हाथ था। अजीत सिंह के साथ 6 रानियां, 20 दासियां, नो उड़दा बेगणिया, 20 गायने तथा दो हजूरी बेगमे सती हुई। गंगा नाम की पड़दायत भी राजा के साथ जलाई गई। उसकी भी राजा के साथ हत्या हुई। तत्कालीन इतिहासकारों का कहना है कि महाराजा की चिता में कई मोर तथा बंदर भी अपनी इच्छा से जलकर भस्म हुए। वह दिन जोधपुर में बड़े शोक संताप और हाहाकार का दिन था। इतिहासकार डॉ गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने राजा अजीत सिंह को कान का कच्चा कहा है।
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1679 से 1724
महाराजा जसवंत सिंह की गर्भवती रानी जसवंत दे ने 19 फरवरी 1679 को राजकुमार अजीत सिंह को लाहौर में जन्म दिया। वीर दुर्गादास एवं अन्य राठौर सरदारों ने मिलकर औरंगजेब से राजकुमार अजीत सिंह को जोधपुर का शासक घोषित करने की मांग की परंतु औरंगजेब ने इसे टाल दिया और कहा कि राजकुमार के वयस्क हो जाने पर उन्हें राजा बना दिया जाएगा। इसके पश्चात औरंगजेब ने राजकुमार और रानियों को परवरिश हेतु दिल्ली अपने पास बुलवा लिया। वहां इन्हें रूप सिंह राठौड़ की हवेली में ठहराया गया। औरंगजेब की मंशा राजकुमार को समाप्त कर जोधपुर राज्य को हमेशा के लिए हड़पने की थी। वीर दुर्गादास औरंगजेब की मंशा को समझ गये और वे अन्य सरदारों के साथ मिलकर चतुरता से राजकुमार अजीत सिंह एवं रानियों को बाघेली नामक महिला की मदद से औरंगजेब के चंगुल से बाहर निकाल लाए। वीर दुर्गादास, गोराधाय तथा मुकुंद दास खींची ने चुपके से दिल्ली से निकालकर सिरोही राज्य के कालिंद्री मंदिर में छिपा दिया। जयदेव नामक ब्राह्मण के घर पर उनकी परवरिश की तथा वयस्क होने पर प्रकट किया। इस कार्य में मेवाड़ महाराणा राज सिंह सिसोदिया ने बड़ी सहायता की। दिल्ली में एक अन्य बालक को नकली अजीत सिंह के रूप में रखा। औरंगजेब ने बालक को असली अजीत सिंह बताते हुए उसका नाम मोहम्मदीराज रखा।
मेवाड़ महाराजा राज सिंह ने अजीत सिंह के निर्वाह के लिए दुर्गादास को केलवा की जागीर प्रदान की। दुर्गादास के प्रयत्नों से इन्हें 1707 ईस्वी में फिर से मारवाड़ राज्य प्राप्त हो गया किंतु कुछ समय बाद ही अजित सिंह ने दुर्गादास को देश निकाला दे दिया। दुर्गादास प्रकरण के अतिरिक्त महाराजा पर कोई आक्षेप नहीं है। उन्हें विवश होकर अपनी पुत्री इंद्रकुंवरी का विवाह मुगल बादशाह है फर्रूखसियर से करना पड़ा किंतु अवसर पाकर उन्होंने फर्रूखसियर की हत्या में प्रमुख भूमिका निभाई और अपनी पुत्री को विधवा करके जोधपुर ले आए। उन्होंने इंद्रकुंवरी का फिर से हिंदू धर्म में शुद्धिकरण किया और उसका विवाह एक क्षत्रिय युवक से कर दिया।
अजीत सिंह धर्म परायण राजा थे। उन्होंने गुण सागर, दुर्गा पाठ भाषा, निर्वाह दोहा, अजीत सिंह रा कह्या दुआ तथा गए उद्धार नामक ग्रंथों की रचना की। महाराजा के लिखे हुए कई गीत भी मिलते हैं। 23 जुलाई 1724 को महाराजा अजीत सिंह की पुत्र बख्त सिंह ने हत्या कर दी। इस हत्या में जयपुर नरेश जय सिंह तथा अजीत सिंह के बड़े पुत्र अभय सिंह का भी हाथ था। अजीत सिंह के साथ 6 रानियां, 20 दासियां, नो उड़दा बेगणिया, 20 गायने तथा दो हजूरी बेगमे सती हुई। गंगा नाम की पड़दायत भी राजा के साथ जलाई गई। उसकी भी राजा के साथ हत्या हुई। तत्कालीन इतिहासकारों का कहना है कि महाराजा की चिता में कई मोर तथा बंदर भी अपनी इच्छा से जलकर भस्म हुए। वह दिन जोधपुर में बड़े शोक संताप और हाहाकार का दिन था। इतिहासकार डॉ गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने राजा अजीत सिंह को कान का कच्चा कहा है।
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